श्रीमद् भगवद गीता – 2.40 “ नेहाभिक्रमनाशोऽस्ति प्रत्यवायो न विद्यते | स्वल्पमप्यस्य धर्मस्य त्रायते महतो भयात् || ४० || ” अनुवाद इस प्रयास में न तो...
एक गाँव में एक स्वर्णकार परिवार रहता था, उसकी ख्याति दूर दूर तक फैली थी। . एक बार वहाँ के राजा ने उसे चर्चा पर बुलाया।...